आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँश्रीराम शर्मा आचार्य
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विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ
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विवाह संस्कार की महत्ता
भारतीय तत्व-वेत्ताओं ने विवाह संस्कार का महान् विधि-विधान इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विनिर्मित किया था। उस समय बोले जाने वाले मंत्र, देवाहवान, यज्ञ एवं अन्यान्य कर्मकाण्डों का एक वैज्ञानिक महत्व है। उनके कारण वर-वधू के अन्तःकरणों में एक विशेष प्रकार की आद्रता आती है और वे अनायास ही एक-दूसरे में घुलने लगते हैं। प्राचीनकाल के सुयोग्य कर्मकाण्डी पण्डित जिन विवाहों को पूर्ण विधि-व्यवस्था के साथ कराते थे उनमें आजीवन मधुरता बनी रहती थी और दुर्भाव के दोष नहीं आने पाते थे। अब जल्दी से बेगार भुगताने की तरह विवाह संस्कार निपटा दिये जाते हैं। उस समय जो प्रशिक्षण बार-वधू को होता था, उसका तो अब नामोनिशान भी नहीं रह गया। दोनों पक्ष के पण्डित अडंग-पडंग करते रहते हैं। उस समय की बर्बादी में उस उत्सव आयोजन में आये हुए लोगों में से बहुत कम सम्मिलित होते हैं। वर-वधू भी यह चाहते हैं कि यह जंजाल जितनी जल्दी सिमट जाय उतना अच्छा। ऐसे औंधे ढंग से कराये गये विवाह संस्कार का वास्तविक प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते। इसके लिए तो हर दृष्टि से प्रभावोत्पादक वातावरण बनाना होगा और वर-वधू को उनके कर्तव्य उत्तरदायित्वों के प्रशिक्षण की भावनापूर्ण व्यवस्था करनी पड़ेगी। तभी ऋषि परम्परा का लाभ मिल सकने की सम्भावना रहेगी।
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- विवाह प्रगति में सहायक
- नये समाज का नया निर्माण
- विकृतियों का समाधान
- क्षोभ को उल्लास में बदलें
- विवाह संस्कार की महत्ता
- मंगल पर्व की जयन्ती
- परम्परा प्रचलन
- संकोच अनावश्यक
- संगठित प्रयास की आवश्यकता
- पाँच विशेष कृत्य
- ग्रन्थि बन्धन
- पाणिग्रहण
- सप्तपदी
- सुमंगली
- व्रत धारण की आवश्यकता
- यह तथ्य ध्यान में रखें
- नया उल्लास, नया आरम्भ